Western Avadh was famous for its fruit orchards - colonial records mention how important they were for local communities. Fruits from orchards were distributed to extended family, and nearby poor families were allowed to collect fallen fruit from them. Fruits were also collected from forests, roadside trees, trees growing on the borders between fields and even from fast-growing shrubs in cultivated fields. Fruits collected from trees/shrubs that had come up on their own were called 'desi', even if they were the same varieties as cultivated fruits. Ber, jamun and gular grew abundantly and were freely available, and were considered desi fruits. Rasbhari, locally known as chanapatapar, could be found growing in millet fields. There was a limited market for fruits like mangoes and guavas, which were available at an affordable price. Families in the region consumed fresh fruits in season, and also preserved mangoes, ber, amla, tamarind and other fruits for consumption throughout the year - richer families made pickles whle poorer families preserved fruits in salt or vinegar. After Independence, when land reforms were announced and land ceilings contemplated, erstwhile zamindars in the region converted their agricultural land into mango orchards to take advantage of higher ceiling limits on the latter. As these landlords were not concerned with marketing the fruit, it was freely available to the local communities. With the threat of ceiling laws receding in the 80s, the orchards were converted into farmland or replanted with commercial varieties of mangoes, which were closely guarded. Currently, the consumption of fruits is dismally low, resulting in a dietary deficit of vitamins and micronutrients. Richer families can afford to buy fruits regularly from the market, but both they and the poor have reduced their fruit diversity and shifted to commercially available fruits such as apples, bananas and pomegranate. Other than mangoes, very few locally growing fruit are consumed. Young respondents shared that they consider ber, jamun etc. to be dehati and do not consume them even when freely available.





आम और अमरूद के बागों के साथ, इस क्षेत्र में देसी फल जैसे बेर, जामुन, बेल और गूलर के पेड़ प्रचुर मात्रा में थे। अंग्रेजों के जमाने के रेकॉर्ड्स में फलों के महत्व का वर्णन किया गया है। बागों के साथ-साथ जंगलों में, सड़कों के किनारे और खेतों के बीच की मेड़ों पर फलों के पेड़ लगाए जाते थे। कई परिवार मोटे अनाज के खेतों से रसभरी बटोरते थे जो अवध में चना-पटापर के नाम से जानी जाती है। इस क्षेत्र के परिवार, हर मौसम में ताजे फलों का सेवन करते थे। फल मुफ्त थे। केवल देसी आम और अमरूद ही बाजार में बिकते थे, पर वो भी बहुत कम मात्रा में। सवर्ण परिवार साल भर खाने के लिए आम, बेर, आंवला और अन्य देसी फलों का आचार डालते थे। गरीब और दलित परिवार इन फलों को सिरके या नमक में परिरक्षित करते थे। आजादी के बाद ‘भूमि सुधार अधिनियम’ और ‘भूमि सीलिंग अधिनियम’ से अपनी खेती वाली जमीनें बचाने के लिए जमींदारों ने उसमें बाग लगा दिए। बाग की जमीन की सीलिंग नहीं थी। इन बागों से देसी फल हर साल बहुत मात्रा में निकलते थे, जिनका मार्केट तब तक व्यापक तौर पर नहीं उभरा था, इसलिए गाँव के लोगों को फल मुफ्त में मिल जाते थे, विशेष रूप से जो फल पेड़ों से गिर जाते थे। 1980 के दशक में सीलिंग का खतरा टल गया, और कल्मी आम की माँग बढ़ी। तब देसी फलों के बाग या तो खेतों में बदल दिए गए या फिर कलमी फलों के पेड़ लगा दिए गए। इन पेड़ों की चौकीदारी भी की जाने लगी और बच्चों तक को गिरे हुए आम चोरी से नसीब होते। 2017 के हमारे सर्वे के अनुसार आज कल फलों का सेवन ना के बराबर रह गया है जिससे लोगों के पोषण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अमीर परिवार बाजार से फल खरीद सकते हैं, पर वे भी दूर के इलाकों से लाए गए फल जैसे सेब, अनार और केला आदि ही खरीदते हैं। विविध प्रकार के स्थानीय फलों का सेवन, सवर्ण- दलित, सभी ने बंद कर दिया है। आम को छोड़ के इमली, बेर, गूलर, जामुन, रसभरी जैसे देसी फल अब देहाती माने जाते हैं। खेतों में या गाँव में इन देसी फलों के पेड़ यदि लगें भी हों, तब भी युवा पीढ़ी इनको बटोर कर नहीं खाती है क्योंकि बटोरने की परम्परा ही खत्म हो गयी है। बटोरकर खाने और इन फलों को भी वे नीची नजर से देखते हैं ।





जानकारी कार्ड


जाति:
क्षेत्र/मिट्टी:
मौसम:


Caste: सभी

Geography: सभी

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: सभी

"खिचड़ी में सूखे बेर मिलाये जाते थे।""

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: सभी

"सूखे बेर चने के साग के साथ पकाये जाते थे क्योंकि यह खट्टापन लाते थे।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"करौंदा चटनी और अचार बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"इमली को नमक, जीरा और मिर्च के साथ मिलाकर सुखाया जाता था।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"आम के गूदे को नमक और मिर्च के साथ मिलाकर सुखाया जाता था। बाद में इसे पानी में भिगोकर चटनी बनाई जाती थी।"

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: सभी

"बेर के फलों को सर्दियों में एकत्र करके सुखाया जाता था। बाद में इन्हें गुड़ में उबाल कर रोटी के साथ खाया जाता था"

Caste: सभी

Geography: सभी

"बेर की बरिया - बेर को नमक और मिर्च के साथ मिलाकर सुखाया जाता था, और बाद में चावल के साथ खाया जाता था"

Caste: सभी

Geography: सभी

"अंबिया (छोटे कच्चे आम) सिरके में भिगोई जाती थी।"

Caste: सवर्ण

Geography: सभी

"नींबू और कटहल से अचार बनता था "

Caste: सभी

Geography: सभी

"आम का भरमार होता था, यहाँ तक कि मवेशियों को भी आम खिलाया जाता था।"

Caste: दलित

Geography: सभी

"महुआ का इस्तेमाल सब्जी और शराब बनाने में होता था।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"बेर को उड़द की दाल या लोबिया, और चने के साग के साथ पकाया जाता था।"

Caste: दलित

Geography: सभी

"हम आम के बगीचों में जाते और गिरे हुए फलों को बीनते थे। बागवान इसके लिय मना नहीं करते थे।

Caste: दलित

Geography: नदी के किनारे

"यहाँ पास में कई मकोइया के पेड़ थे, साथ ही अन्य फलों के पेड़ थे।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"बेलझरा एक छोटा, खट्टा प्रकार का बेर है जो झाड़ियों में उगता है। इन्हें गुड़ के साथ खाया जाता था, या बाद में उपयोग के लिए सुखाया जाता था।"

Caste: दलित

Geography: जंगल

"हम जंगलों से बेर, बेलझरा, जामुन, करौंदा आदि अच्छी मात्रा में इकट्ठा करते थे।"

Caste: दलित

Geography: सभी

"कभी-कभी मैं दिन में केवल बाग से अमरूद (अमरूद) खाती थी"

Caste: दलित

Geography: जंगल

"जब खाने के लिए और कुछ नहीं होता था, तो हम अपनी भूख बेर खाकर मिटा लेते थे।"

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: सभी

"हम इमली को साफ कर और डेहरिया में धर लेते थे - यह महीनों तक चलती थी।"

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: नदी के किनारे

"यहाँ शरीफा (सीताफल) और बेल बहुत होता था - हम इससे बनी सामग्री मन से खाते थे क्योंकि यह पौष्टिक होती थी ।"

Caste: दलित, पिछड़े

Geography: सभी

"सभी के लिए पर्याप्त से अधिक फल था। प्रत्येक परिवार कितना ले सकता है, इसके लिए हमें नियम बनाने की जरूरत नहीं थी।"

Caste: दलित

Geography: सभी

"फलों को बेचने के लिए ज्यादा बाजार नहीं था। विक्रेता जो आम बेचने के लिए सहादतनगर ले जाते थे, वे अपनी बचे हुए आम वापस लाते और गांव के बाहर फेंक देते थे।"

Caste: दलित

Geography: जंगल

"जंगल में बहुत सारी जंगल-जलेबी की झाड़ियाँ थीं।"

Caste: दलित

Geography: जंगल

"जंगल में अब कुछ छोटे पेड़ ही बचे हैं, सभी बड़े फलों के, पेड़ काट दिए गए हैं।"

Caste: दलित

Geography: जंगल

"पहले, पुरुष लगभग रोज जानवरों को चराने जंगल जाते थे, और महिलाएं तब जाती थीं जब फल लेना होता था।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"चकबंदी के बाद कई फलों के पेड़ काट दिए गए।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"इमली के पेड़ लकड़ी बेचने के लिए के लिए काटे गये।"

Caste: सभी

Geography: सभी

"हम हर मौसम में फल खाते हैं, हालांकि पहले की तुलना में यह बहुत कम हैं, और अब उन्हें सुखाते या संरक्षित नहीं करते हैं"

घटनाक्रम


1979-80

1979-80 में सूखे के कारण कई फलदार पेड़ सूख गए और काट दिए गए।

1980s

1980 के दशक में, पूरे क्षेत्र की पंचायतों में चकबंदी की गई। बरेलिया गाव में बेर के पेड़ों से भरे एक छोटे से जंगल को हटा दिया गया। जमीन के पट्टे बनाकर लोगों में वितरित कर दिया गया।

पहले, खेतों के बीच चौड़ी मेड़ (उठी हुई सीमाएँ) होती थीं, जिन पर कई फलों के पेड़ होते थे। जैसे-जैसे सिंचाई और आधुनिक खेती के तरीकों का प्रसार हुआ, किसानों ने इन सीमाओं को कम किया और पेड़ों को काटा।

1960 के दशक में कई आम के बाग स्थापित किए गए थे ताकि सीलिंग सीमा से ऊपर की भूमि की जब्ती से बचा जा सके (बगीचे की भूमि, खेती योग्य भूमि की तुलना में अधिक सीलिंग सीमा के अधीन थी)। जमींदारों को बागों से होने वाली आय की चिंता नहीं थी, और उन्होंने ग्रामीणों के प्रवेश पर रोक नहीं लगाया। जैसे ही खतरा टला, जमींदारों ने कुछ बागों को काट दिया और बाकी हिस्सों में कलमी (हाइब्रेड) आम के पौधे लगाए। पुनर्निर्मित बागों में चौकीदारों को नियुक्त किया गया। गिरे हुए मुफ्त आमों तक ग्रामीणों की पहुंच रुक गई।

1990s

सड़क के विस्तार के कारण कई पेड़ काटे गए। लगाए गए नये पेड़ तेजी से बढ़ने वाली थे पर यह फलदार नहीं थे।

लकड़ी के रूप में बेचने के लिए यूकेलिप्टस के रोपण को 90 के दशक में लाया गया और इस क्षेत्र में कई काँटे (लकड़ी व्यापार पोस्ट) स्थापित हुए। इस प्रक्रिया में इमली जैसे फलों के पेड़ भी लकड़ी के लिए काटे जाने लगे।

2000s

कुछ गाँवों के पास जंगल अभी भी इस क्षेत्र में पाए जाते हैं और 2000 के दशक तक, इनमें बहुत सारे फलदार पेड़ थे। अवैध पेड़ों की कटाई और अतिक्रमण ने पेड़ों की संख्या को कम कर दिया। एक जंगल में, बांध और वनरोपण कार्यक्रम शुरू किया गया था। लेकिन लगाए गए नये पेड़ यूकेलिप्टस, जट्रोफा आदि थे। यह बिना फल वाले, तेजी से बढ़ने वाले पेड़ थे। हलांकि, लगाए गए पौधों की सुरक्षा और देखभाल के लिए स्थानीय लोगों को काम पर रखा गया था, लेकिन उनका भुगतान एक साल बाद रोक दिया गया, जिससे लोगो की रुचि खो दी। इस प्रकार जंगल को उतना पुनर्जीवित नहीं किया जा सका, जितना कि हो सकता था।

Information Cards
Caste:
Geography:
Seasons:
Media Type:

Caste: All

Geography: All

Many types of fruits were cultivated or grew wild in western Avadh. Fruit shrubs and trees could be found in forests, by the river or alongside roads. Villagers in this video describe how they collected and consumed these fruits.

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"Ber was added to khichdi"

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"Ber was cooked with chane ka Saag as it was sour"

Caste: All

Geography: All

"Karaonda (carissa carandas) was used to make Chutney and pickle"

Caste: All

Geography: All

"Tamarind was mixed with salt, jeera (cumin) and chilli peppers and dried"

Caste: All

Geography: All

"To make aamras tikki, mango pulp was mixed with salt and chilli peppers and dried. Later, it was soaked in water and made into chutney"

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"Dried Ber were boiled with Gur and eaten with roti" – Ber (jujube) fruit were collected in winter and dried. Later, they would be boiled with jaggery and eaten with Roti

Caste: All

Geography: All

"Ber ki bariya – jujube mixed with salt and chilli peppers, dried, and later eaten with rice"

Caste: All

Geography: All

"Ambiya (small raw mangoes) were soaked in vinegar"

Caste: Savarna

Geography: All

"Pickles were made from lemon and jackfruit"

Caste: All

Geography: All

"Mangoes were plentiful, even cattle were fed mangoes"

Caste: Dalit

Geography: All

"Mahua was used in Sabji and to make alcohol"

Caste: All

Geography: All

"Ber was cooked with urad Dal or lobhiya and chane ka saag"

Caste: Dalit

Geography: All

"We would go into mango orchards and pick up the fallen fruit. The orchard owners did not object. We would dry them and use them for cooking"

Caste: Dalit

Geography: River banks

"There were many makoiya trees nearby, as well as other fruit trees"

Caste: All

Geography: All

"Beljharra is the small, sour type of jujube which grow on shrubs. They were eaten with Gur or dried for later use"

Caste: Dalit

Geography: Forests

"We used to collect sackfuls of ber, beljharra, jamun, Karaonda etc. from the forests"

Caste: Dalit

Geography: All

"Sometimes I would eat only Amrud (guava) from the orchard the entire day"

Caste: Dalit

Geography: Forests

"We would fill our stomachs with Ber when there was nothing else to eat"

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"We used to clean and store tamarind in deheriya – it would last us for months"

Caste: Dalit, OBC

Geography: River banks

"There was so much Sharifa (custard apple) and Bel (Bengal quince) - they are nutritious and we ate to our hearts" content"

Caste: Dalit, OBC

Geography: All

"There was more than enough fruit for everyone. We didn"t have to make rules for how much each family could take"

Caste: Dalit

Geography: All

"There wasn"t much of a market for fruit. Vendors who took mangoes to Saadatnagar to sell were told to take their unsold produce back. They would dump them outside villages"

Caste: Dalit

Geography: Forests

"There were lots of jungle jalebi shrubs in the forest"

Caste: Dalit

Geography: Forests

"Now only some small trees are left in the forest, all the big fruit trees have been cut down"

Caste: Dalit

Geography: Forests

"Earlier, men would go to the forest almost everyday and women would go when there were fruits to pick"

Caste: All

Geography: All

"After Chakbandi (land consolidation), many fruit trees were cut down"

Caste: All

Geography: All

"The tamarind trees were cut down to be sold for timber"

Caste: All

Geography: All

"We eat fruits in season, though much less than before, and do not dry or preserve them now"

Time Line
1979-80

The drought of 1979-80 led to the drying up and cutting down of many fruit trees

1980s

In the 1980s, land consolidation was taken up in Panchayats across the region. In Bareliya, a small forest filled with Ber trees was cleared away, and the land parcelled and distributed

Earlier, there were wide Med (raised borders) between fields, with many fruit trees on them. As irrigation and modern cultivation practices spread, farmers reduced these borders and cut down trees

Many mango orchards had been set up in the 1960s to avoid confiscation of land above ceiling limits (orchard lands were subject to higher ceiling limits than cultivated lands). The landowners weren't concerned about income from the orchards, and didn't bar entry to villagers. As the threat from ceilings receded, landowners cut down some orchards, and planted hybrid, marketable mangoes in the rest. Guards were appointed in the repurposed orchards, and cut off villagers' access to fallen, free mangoes

1990s

Many trees were cut due to road expansions. The new trees planted were the fast growing varieties, not fruit trees.

Planting of eucalyptus to sell as timber picked up in the 90s, and many kaanta (timber trading posts) were set up in the region. In the process fruit trees, such as tamarind, also began to cut down for timber

2000s

A handful of village forests can still be found in the region and, until the 2000s, these had plenty of fruit trees. Illegal tree felling and encroachment had brought the numbers down. In one forest, a bunding and afforestation program was taken up. But the new trees planted were eucalyptus, jatropha etc. - fast growing trees with no fruits. While locals were hired to protect and nurture the newly planted saplings, their payments were stopped after a year and they lost interest. Thus the forest was not revived as well as it could have been and provides very little fruit to the nearby communities